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लेखनी कहानी -15-Jun-2022 उसका यकीन उठ गया

चमनज़ार  तुम्हारे  ही तबस्सुम से शादाब होते हैं,
देखके तुम्हें लगता हैं हँसने के भी आदाब होते हैं!

सुबहे-दम मशगूल रहती है कुदरत भी इबादत में,
कलिया सज़दे करती हैं शज़र के आदाब होते हैं

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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2 Comments

Raziya bano

24-Jun-2022 05:41 PM

Nice

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Renu

24-Jun-2022 04:27 PM

👌

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